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 खड़ी बोली लोकगीत

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khan
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PostSubject: खड़ी बोली लोकगीत    खड़ी बोली लोकगीत  EmptyMon Jan 31, 2011 7:31 pm

खड़ी भाषा के लोकगीत
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khan
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PostSubject: Re: खड़ी बोली लोकगीत    खड़ी बोली लोकगीत  EmptyMon Jan 31, 2011 7:31 pm

पिताजी काहे को ब्याही परदेस…
हम तो पिताजी थारे झाम्बे की चिड़िया
डळा मारै उड़ जाएँ,
काहे को ब्याही परदेस…
हम तो पिताजी थारे खूँटे की गउँवाँ
जिधर हाँको हँक जाएँ,
काहे को ब्याही परदेस…
हम तो पिताजी थारे कमरे ईंटें,
जिधर चिणों चिण जाएँ,
काहे को ब्याही परदेस…
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khan
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PostSubject: Re: खड़ी बोली लोकगीत    खड़ी बोली लोकगीत  EmptyMon Jan 31, 2011 7:32 pm

कम उम्र का अधपढ़ा पति
पति पढ़ण चले ये वे गए स्कूलों बीच
परचा भूल गए मास्टर नै मारा रूल ।
पति पढ़ण चले ये वे गए स्कूलों बीच…
पति रोवण लगे ये वे आए गोरी पास
-मास्टर ! क्यूँ मारा रे मेरा याणा –सा भरतार
पति पढ़ण चले ये वे गए स्कूलों बीच…
बेब्बे यूँ मार्या ये कि नौंवीं हो गया फ़ेल ।
पति पढ़ण चले ये वे गए स्कूलों बीच…
-मास्टर यूँ न जाणै ओ ,तेरे से ज्यादा ज्ञान
मैं तो आप पढ़ा लूँगी ,हो दसवीं करादूँ पास
पति पढ़ण चले ये वे गए स्कूलों बीच…
पति पढ़ण चले वे आए गोरी पास
हरफ़ भूल गए वो गोरी नै मारी लात
पति पढ़ण चले ये वे गए स्कूलों बीच…
पति रोवण लगे ये वो आए अम्मा पास
बेट्टा चुप रह्वो रे, बहुओं का आग्या राज ।
पति पढ़ण चले ये वे गए स्कूलों बीच…

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PostSubject: Re: खड़ी बोली लोकगीत    खड़ी बोली लोकगीत  EmptyMon Jan 31, 2011 7:33 pm

बन्नी –गीत( माँ की सीख -हास –परिहस)

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो

जै तेरा ससुरा मन्दी ऐ बोल्लै

पत्थर की बण जाइयो मेरी लाड्डो

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो


जो तेरी सासु गाळी ऐ देगी

ले मूसळ गदकाइयो मेरी लाड्डो

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो

जो तेरा जेठा मन्दी ऐ बोल्लै

घूँघट मैं छिप जाइयो मेरी लाड्डो

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो

जो तेरी जिठाणी गाळी देगी

ले सोट्टा गदकाइयो मेरी लाड्डो ।

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो


जो तेरा देवरा मन्दी ऐ बोल्लै

हाँसी मैं टळ जाइयो मेरी लाड्डो

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो


जो तेरी नणदा गाळी ऐ देगी

चुटिया पकड़ घुमाइयो मेरी लाड्डो

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो


जो तेरा राजा मन्दी ऐ बोल्लै

कुछ न पलट कै कहियो मेरी लाड्डो ।

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो

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PostSubject: Re: खड़ी बोली लोकगीत    खड़ी बोली लोकगीत  EmptyMon Jan 31, 2011 7:34 pm

भात का गीत

काँकर ऊपर काँकरी, मेरी मैया रे जाए
मैं थारै आई पावहणी
जो मेरा रखोगे मान रे, मेरी मैया रे जाए

-मान राखैगी तेरी मायड़ी
जिसकी तू लाडो धीयड़ रे
-मायों के राखै न रहै
बीरणों की लम्बी पंसाल रे, मेरी मैया रे जाए

-जिब हम घर के नित छोटे
जिब क्यूं नी करा था बुहार , मेरी मैया री जाए
-इब तुम घर के लखपति
इब हमनै कर्या बुहार रे राम, मेरी मैया रे जा
फलसे का गाड्डा बेच कै, मेरी मैया रे जाए

तौं मेरे मँढ़ा चढ़ आइ रे
फलसे का गाड्डा ना बिकै, मेरी मैया री जाइ
फलसे की सोभा जाइ रे राम

-खूँटे की भुरिया बेच कै मेरी मैया रे जाए
तौं मेरे मँढा चढ़ आवै
-खूँटे की भुरिया ना बिकै
खूंटे की सोभा जाइ रे, मेरी मैया री जाए

-भावज का हँसला बेचकै
तौं मेरे मँढा चढ़ आवै तौं मेरे मँढा चढ़ आवै
-भावज का हँसला ना बिकै
हँसला तो बहू के बाप का, मेरी मैया री जाए

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