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 बूढ़ी धरती डोल रही है

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khan
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PostSubject: बूढ़ी धरती डोल रही है   बूढ़ी धरती डोल रही है EmptyMon Jan 31, 2011 3:44 pm

देश-विदेश में लंबे समय से भूकंप के वैज्ञानिक कारणों की खोज-खबर चल रही है। कुछ तीर-तुक्के भी चल रहे हैं। मगर इधर भू-वैज्ञानिकों ने कुछ महत्वपूर्ण और रोचक कारणों पर प्रकाश डाला है। शोधपरक तथ्य बताते हैं कि सूर्य से अलग होने पर यह धरती निरंतर उसकी चाह में उसका पीछा कर रही है। सूर्य के चारों ओर धरती का घूमना इसकी पुष्टि करता है। सूरज की चाह में निढ़ाल होती धरती अब वैज्ञानिक भाषा में ‘बुढ़ाने’ लगी है। इसी बुढ़ाती धरती की चाल बदल गयी और वह वृद्ध होने लगी है।

बुढ़ाती धरती की नब्ज टटोलने की पहल करते हुए भारतीय भौतिकविदों ने अति आधुनिक तर्क प्रस्तुत किया है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलूरू के दो खगोलविदों ने यह तथ्य पेश किया है कि शुरुआत में पृथ्वी में जो गुरुत्वाकर्षण शक्ति थी, वह अब नहीं रही, धीरे-धीरे चुक रही है।

खगोलीय परीक्षण बताते हैं कि सृष्टि निर्माण के समय गुरुत्वाकर्षण शक्ति प्रबल थी जो नाभिकीय बल के समान शक्तिशाली थी। मगर ज्यों-ज्यों ब्रह्मांड का प्रसार हुआ, गुरुत्वाकर्षण शक्ति क्षीण होती चली गई। ऐसा क्यों हुआ? यह एक विचारणीय प्रश्न है, जिस पर वैज्ञानिकों के अलग-अलग विचार हैं।


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PostSubject: Re: बूढ़ी धरती डोल रही है   बूढ़ी धरती डोल रही है EmptyMon Jan 31, 2011 3:45 pm

घटता गुरुत्वाकर्षण बल
यह एक माना हुआ तथ्य है कि धरती तथा चंद्रमा गुरुत्वाकर्षण बल से ही संतुलित हैं। इस समय इन दोनों को संतुलित करने के लिए जो गुरुत्वाकर्षण बल विद्यमान है, वह उस समय के अति गुरुत्वाकर्षण बल का लगभग ‘लाख शंखवां भाग’ है। सृष्टि के जन्म के समय ब्रह्मांड अत्यंत ही संघटित अवस्था में था और ‘अति गुरुत्वाकर्षण शक्ति’ अति सघन कणों में समाई हुई थी। यह एक आश्चर्यपूर्ण बात है कि ज्यों-ज्यों पृथ्वी की उम्र पकती गयी, नाभिकीय बल तो स्थिर रहा, मगर गुरुत्वाकर्षण बल निरंतर क्षीण होता चला गया। विश्व स्तर पर इस भारतीय खोज को महत्ता मिल रही है। हालांकि कुछ लोग इसे सहज गले नहीं उतार पा रहे, मगर नकार भी नहीं रहे हैं, बल्कि भू-वैज्ञानिकों का एक बड़ा वर्ग इसे मान रहा है।


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PostSubject: Re: बूढ़ी धरती डोल रही है   बूढ़ी धरती डोल रही है EmptyMon Jan 31, 2011 3:46 pm

गुरुत्वाकर्षण के इस घटते स्वरूप को देखते हुए इस बात पर भी उंगली उठाई जा रही है कि धरती बुढ़ा रही है और कंपकंपा रही है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि धरती ठीक चौबीस घंटों में अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा कर लेती है। यह तथ्य एक लंबे समय से विश्व स्तर पर मान्य है, परंतु अंतर्राष्ट्रीय भू-भौतिकी वर्ष के दौरान किये गये अध्ययनों और अंतरिक्ष अनुसंधानों में इस बात की पुष्टि हुई है कि धरती के ‘लड़खड़ाने’ तथा कुछ अन्य कारणों से उसके अपनी धुरी पर घूमने की परिभ्रमण अवधि चौबीस घंटे एक जैसी नहीं रहती।


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PostSubject: Re: बूढ़ी धरती डोल रही है   बूढ़ी धरती डोल रही है EmptyMon Jan 31, 2011 3:46 pm

असल में पृथ्वी की गति में मामूली फेरबदल के कारण सूक्ष्म अंतर आ जाते हैं। इसी बात की पुष्टि अमेरिकी नौसेना वेधशाला के समय-विभाग के अध्यक्ष डॉ. गेरनार विकलर ने की है। डॉ. गेरनार ने अपनी वर्षो की शोध रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि पिछले 25 वर्षो में पहली बार धरती के घूमने की गति में तेजी आयी है। इससे यह पुष्टि होती है कि धरती के घूमने की गति कम-बढ़ती होने के पीछे कुछ कारण अवश्य हैं, जो बाहरी भी हो सकते हैं और स्वयं धरती के अपने भी। घूमने की गति में यह तीव्रता पहली बार वर्ष 1955 में पायी गयी थी।
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PostSubject: Re: बूढ़ी धरती डोल रही है   बूढ़ी धरती डोल रही है EmptyMon Jan 31, 2011 3:47 pm

देश-विदेश के भू-वैज्ञानिकों ने तब इस स्थिति को गंभीरता से लिया था और काफी सोच-विचार हुआ था कि इसके कारण खोजे जाएं। वैज्ञानिक सोच और भू-खगोलीय भौतिकविदों ने बताया था कि धरती के घूमने की गति में धीमापन समुद्र के घर्षण के कारण होता है। असल में चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण धरती अक्सर धुरी से हटती है, उसकी गति धीमी पड़ती है, लेकिन विश्व स्तर पर वैज्ञानिकों का विचार है कि धरती के साथ हो रही छेड़छाड़ के कारण भी भूकंप की स्थिति आ रही है।


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PostSubject: Re: बूढ़ी धरती डोल रही है   बूढ़ी धरती डोल रही है EmptyMon Jan 31, 2011 3:47 pm

वनों की अंधाधुंध कटाई, भारी मात्र में भू-गर्भीय दोहन और जनसंख्या का बढ़ता बोझ बुढ़ाती धरती को कंपकंपा रहा है। हमारे देश में कभी 80 प्रतिशत बहुत सघन जंगल हुआ करते थे, मगर आज हमारे पास ऐसे वन मात्र 8 प्रतिशत रह गये हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक हमारी वन-संपदा तहस-नहस हुई पड़ी है। हटती हरी चादर से उधड़ी नंगी होती धरती कराह उठी है। धरती अपने हरे फेफड़े खोकर हांफ-कांप रही है।

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PostSubject: Re: बूढ़ी धरती डोल रही है   बूढ़ी धरती डोल रही है EmptyMon Jan 31, 2011 3:48 pm

कारणों की पड़ताल

धरती की इस कंपकंपाती दशा का पहली बार वैज्ञानिक अध्ययन 1755 में किया गया था। हुआ यों कि लिस्बन में ऐसा विनाशकारी भूकंप आया कि वैज्ञानिक सकते में आ गए थे और तत्काल वैज्ञानिक जांच-पड़ताल प्रारंभ हो गई।

लम्बे अध्ययन के बाद तथ्य सामने आया कि भूकंप की शुरुआत धरती के स्तर से काफी नीचे तरल चट्टानों में होती है। इस स्थान को भूकंप का नाभीय केन्द्र कहा जाता है, इसके ठीक ऊपर धरती की सतह वाले स्थान को अभिकेन्द्र कहा जाता है। अध्ययनों के आधार पर इस बात की पुष्टि की जा चुकी है कि भूकंप का प्रभाव क्षेत्र सामान्यत: एक लाख वर्ग किलोमीटर तक होता है, परंतु कभी-कभी यह क्षेत्र बढ़कर 12 लाख किलोमीटर तक भी जा पहुंचता है।
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PostSubject: Re: बूढ़ी धरती डोल रही है   बूढ़ी धरती डोल रही है EmptyMon Jan 31, 2011 3:50 pm

भूकंप की कहर ढाती स्थिति को देखते हुए इसके विस्तृत अध्ययन की दिशा में कदम उठाए हैं। इसके लिए हर पहलू पर गहराई से अध्ययन किए जा रहे हैं। बल्कि वैज्ञानिकों द्वारा इसे भूकंप विज्ञान यानी सिस्मोलॉजी नाम से अलग शाखा ही बना दिया गया है। एक लम्बे अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट दी है कि भूकंप के स्थान तीन प्रकार के हो सकते हैं, एक तो वे स्थान जहां समुद्री तटें धरती के क्षेत्र में प्रवेश किए हुए होती हैं, दूसरे वे जहां धरती की प्लेटें एक-दूसरे के साथ रगड़ खा रही होती हैं और तीसरे वे स्थान जहां विभिन्न महाद्वीप एक-दूसरे की ओर खिसक रहे हैं।

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PostSubject: Re: बूढ़ी धरती डोल रही है   बूढ़ी धरती डोल रही है EmptyMon Jan 31, 2011 3:50 pm

रात के अंधेरे में डोलती है धरती

अजीब इत्तेफाक है कि अधिकतर भूकंप रात के अंधेरे में आते हैं। 18 जनवरी 2011 को दिल्ली में आया भूकंप रात को लगभग 2 बजे के करीब आया, जो हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान के बड़े क्षेत्र को हिला गया। इसी प्रकार वर्ष 1999 का भूकंप भी रात 12 बजे के बाद आया। 20 अक्टूबर, 1991 को लातूर में भी भूकंप रात के 3 बजकर 56 मिनट पर आया। 1994 में 30 जून को दिल्ली में भूकंप रात में 2 बजकर 53 मिनट पर आया। भूकंपों की गणना देखें तो पता चलता है कि ये रात के अंधेरे में ही कहर ढाते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिकों ने इस बात को काफी गहराई से लिया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि 5 से अधिक तीव्रता वाले भूकंप हमेशा सूर्योदय से कुछ पहले आते हैं। चूंकि इससे ऊपर की तीव्रता वाले भूकंप आधी रात के बाद अपना असर दिखाते हैं।

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PostSubject: Re: बूढ़ी धरती डोल रही है   बूढ़ी धरती डोल रही है EmptyMon Jan 31, 2011 3:51 pm

भू-वैज्ञानिक इस बात पर भी काफी चिंतित हैं कि बड़े-बड़े भूकंप धरती के उन्हीं भागों में क्यों कहर ढाते हैं जो सूर्य के प्रकाश से दूसरी ओर होते हैं। यह मुद्दा इस बात पर सोचने को मजबूर करता है कि सूर्य और धरती की बड़ी-बड़ी गुरुत्वीय शक्तियां आपस में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में एक-दूसरे को अवश्य प्रभावित करती हैं।

सूरज के लिए तरसती धरती शायद सूरज के नजदीक न आने के कारण कंपित हो जाती है। जिसका परिणाम होता है भूकंप। भूकंप के साथ एक और बात यह भी जुड़ी हुई है कि भूकंप के तत्काल बाद बारिश भी होती है। हालांकि हर बार ऐसा नहीं होता, लेकिन अभी तक की गणनाएं इस बात की सबूत हैं कि जब-जब धरती पर जिस क्षेत्र में भूकंप आया है, उसके बाद वहां वर्षा भी हुई है। वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि भूकंप आने की स्थिति में मानव की स्थितियां ही बदल जाती हैं। कुछ लोगों के हाथ-पांव ठंडे हो और सिर भारी हो जाता है और ऐसी अवस्थाओं में उनमें खीझ भी उत्पन्न हो जाती है।

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PostSubject: Re: बूढ़ी धरती डोल रही है   बूढ़ी धरती डोल रही है EmptyMon Jan 31, 2011 3:52 pm

भूकंप कैसे कैसे

भूकंप मोटे तौर पर दो प्रकार के होते हैं। एक वे जो धरती के अंदर की टकराहट से उत्पन्न होते हैं और दूसरे धरती के अंदर गर्मी बढ़ जाने से ज्वालामुखी विस्फोट से। अभी तक के स्थापित आधुनिकतम भूकंपीय सिद्धांतों में प्लेट टेक्टॉनिक यानी पट्टिका विवर्तनिका को ही विश्व में अहमियत दी गयी है। ज्ञात हो कि 20वीं सदी में हिमालय का क्षेत्र 8 विनाशकारी भूकंपों से दो-दो हाथ कर चुका है।

असल में हमारी पृथ्वी प्लेटों से बनी है, उनमें कहीं गति तो कहीं स्थिरता आती रहती है। भारतीय क्षेत्र की प्लेट, जो अभी भी गतिशील है, जब भी तिब्बत की प्लेट से टकराती है या तिब्बत की प्लेट के नीचे घुस जाती है तो संपूर्ण हिमालय क्षेत्र थरथरा उठता है। इस सिद्धांत के अनुसार, धरती की बाहरी सतह सात प्रमुख और कुछ छोटी प्लेट्स में बंटी है। प्लेट्स 50 से 100 किलोमीटर मोटाई की होती हैं। जब ये आपस में टकराती हैं, तो इनमें क्षरण होता है। साथ ही दरारें भी पैदा हो जाती हैं। इन प्लेटों का आपस में टकराना ही भूकंप है।

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PostSubject: Re: बूढ़ी धरती डोल रही है   बूढ़ी धरती डोल रही है EmptyMon Jan 31, 2011 3:52 pm

इन प्लेटों में तरंगें होती हैं। इसे कुछ इस तरह से समझा जाता सकता है कि धरती की सतह के नीचे या उसके आसपास ऊर्जा के मुक्त होने से वह स्थान विशेष अथवा उसकी परत तेजी से घड़ी के पेंडुलम की तरह दोलन करने लगती है। यही दोलन भूकंप को जन्म देता है। पाया गया है कि कठोर चट्टानों में तरंगें बेहद तेजी से प्रवाहित होती हैं, जबकि नरम चट्टानों में कम।

वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि उत्तर-पूर्वी भारत में धरती की परत हर साल 5 से.मी़ खिसक रही है। यह स्थिति भूकंपों की संवेदनशीलता को बढ़ाती है और रह-रहकर भूकंप आने का संदेशा देती है। तिब्बत जैसी स्थिर प्लेट को ‘फुट’ और भारतीय चलायमान प्लेट को ‘हैंगिंग’ कहा जाता है।

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PostSubject: Re: बूढ़ी धरती डोल रही है   बूढ़ी धरती डोल रही है EmptyMon Jan 31, 2011 3:54 pm

हैंगिंग प्लेट पर लगातार पीछे की गति का दबाव पड़ता रहता है। यहां तक कि वह रबर की तरह मुड़ जाती है। इसी के साथ वर्षो की इकट्ठी ऊर्जा का बड़ा भाग तापीय क्रिया में बदलकर चट्टानों को गला डालता है। जिन स्थानों पर ये प्लेटें देर में टूटती हैं, वहां भयंकर भूकंप आते हैं। हाल के शोध बताते हैं कि हिमालय की ऊपरी अग्रिम पंक्तियों की सतह में भू-चुबंकीय तरंगें बेहद अनियमित हैं।

भारतीय परीक्षण में इसी को आधार बनाते हुए कोई दर्जन भर केंद्र चुने गए। इस दिशा में हुए परीक्षण बताते हैं कि दिल्ली-हरिद्वार रिज का पश्चिम भाग अपनी परत के बीच के हिस्से से बढ़ी हुई विद्युत चालकता दो स्तरों पर दिखाता है। एक तो मुख्य अग्रिम भाग के पास और दूसरा गंगा के मैदान में दक्षिणी किनारे पर। भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि इस विद्युत चालकता का पैदा होना असल में धरती के गर्भ में हिलोरें लेते तरल पदार्थ की देन है। यह पदार्थ जहां भी पहुंचता है, वहीं विद्युत चालकता बढ़ाता है और भूकंप के खतरे भी। देखा जाए तो भूकंप की नब्ज टटोलते अनुसंधान में हमारी यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। अभी यह शुरुआत है, लेकिन भविष्य में हम इसको समझते हुए भूकंप के खतरों की जानकारी दे पाएंगे।



सोजन्य : .livehindustan.com
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